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Mantras

महामृत्युंजय मंत्र

      ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
      ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।

         महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। शिवपुराण में उल्लेख किए गए इस मंत्र के जप से आदि 

         शंकराचार्य को भी जीवन की प्राप्ती हुई थी। हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का 

         पालन -पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म -मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें।

शिव जी का मूल मंत्र (पंचाक्षरी शिवा मंत्र)
      ऊँ नम: शिवाय।।

          मंत्र का अर्थ है कि 'मैं भगवान शिव को नमन करता हूँ।

शिव गायत्री मंत्र

       ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

          मंत्र का अर्थ है - "हे सर्वेश्वर भगवान ! आपके हाथ में त्रिशूल है | मेरे जीवन में जो शूल है, कष्ट है | वो आपके कृपा से ही 

          नष्ट होंगे | मैं आपकी शरण में हूँ ".. ऐसा करने से उस भक्त की रक्षा हो जाती है |

मंत्र

       कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारमसदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवन भवानीसहितं नमामि।

          मंत्र का अर्थ है  :जो कर्पूर के समान पवित्र और श्वेत है और करुणा और दया का स्वरूप है, उसमें सारा संसार समाया हुआ है, जिसने सर्प को हार के समान धारण किया है, जो संसार के कोने-कोने में विराजमान है, जिसके हृदय में वास है। माँ भवानी की, ऐसे भगवान शिव और माँ पार्वती को मेरा प्रणाम।

शिव के प्रिय मंत्र

       1. नमो नीलकण्ठाय।

       2. ॐ पार्वतीपतये नमः।
      3. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

शिवलिंग पर जल अर्पण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

1. शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय कभी भी पूर्व दिशा की ओर खड़े होकर भगवान को जल अर्पण नहीं करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान की शिवलिंग का मुख पूर्व दिशा की ओर ही होता है.

2. पश्चिम दिशा की ओर खड़े होकर भी भगवान को जल अर्पण ना करें. क्योंकि पश्चिम दिशा की ओर भगवान की पीठ होती है और पीठ की ओर से खड़े होकर जल अर्पण करने से श्रेष्ठ फल प्राप्त नहीं होते.

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